बिहार और बिहारी ! क्या से क्या हो गया बिहार ?

परिचय

बिहार, भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक महत्वपूर्ण राज्य है, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है। यह राज्य गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है, जो इसकी भौगोलिक स्थिति को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। बिहार का क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर है, जो इसे भारत के बड़े राज्यों में से एक बनाता है। जनसंख्या के मामले में, बिहार का स्थान देश में तीसरे स्थान पर आता है, जिसमें लगभग 12 करोड़ लोग निवास करते हैं।

बिहार का सांस्कृतिक महत्व अति प्राचीन काल से रहा है। यह वो भूमि है जहां महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था और जहां महावीर ने जैन धर्म का प्रचार किया था। इसके अतिरिक्त, बिहार का नाम प्राचीन ‘विहार’ शब्द से आया है, जिसका अर्थ बौद्ध मठ होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, यह राज्य मौर्य और गुप्त साम्राज्य के समय में भी विशेष महत्व रखता था।

बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में मिथिला पेंटिंग, लोक गीत, और विभिन्न शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, बिहार में कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी स्थित हैं, जैसे बोधगया, पावापुरी, और वैशाली। ये स्थल न केवल धार्मिक, बल्कि पर्यटकीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।

बिहार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि इसे भारत के अन्य राज्यों से विशिष्ट बनाती है। इस राज्य का योगदान भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। आधुनिक समय में भी, बिहार शिक्षा और प्रशासनिक क्षेत्रों में अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है।

प्राचीन काल का बिहार

बिहार का प्राचीन काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें मौर्य, गुप्त, और पाल वंशों का प्रमुख योगदान रहा है। मौर्य साम्राज्य (322-185 ई.पू.) के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरू चाणक्य की सहायता से एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। मौर्य साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक अशोक महान थे, जिन्होंने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया और अपने साम्राज्य में धार्मिक सहिष्णुता और नैतिकता का प्रचार किया।

गुप्त वंश (320-550 ई.) को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। इस काल में कला, विज्ञान, साहित्य और संस्कृति का अत्यधिक विकास हुआ। गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) और समुंद्रगुप्त के शासनकाल में शिक्षा और ज्ञान का बहुत बड़ा योगदान रहा। उनके संरक्षण में नालंदा विश्वविद्यालय का विकास हुआ, जो प्राचीन विश्व के सबसे प्रमुख शिक्षण संस्थानों में से एक था।

पाल वंश (750-1174 ई.) का शासनकाल बिहार और बंगाल में था। इस वंश के शासकों ने बौद्ध धर्म का समर्थन किया और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो नालंदा विश्वविद्यालय के समान ही प्रसिद्ध था। दोनो विश्वविद्यालयों में देश-विदेश से विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे और यहाँ से शिक्षा प्राप्त करके विश्वभर में ज्ञान का प्रसार करते थे।

इस प्रकार, मौर्य, गुप्त, और पाल वंशों के शासनकाल में बिहार ने शिक्षा, संस्कृति, और सभ्यता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने प्राचीन काल के बिहार को ज्ञान का केंद्र बनाया और इसे विश्वभर में प्रसिद्ध किया।

मध्यकालीन बिहार

मध्यकालीन बिहार का इतिहास कई महत्वपूर्ण घटनाओं और परिवर्तनों से भरा हुआ है। इस काल में मुस्लिम शासन का उदय हुआ, जिसने बिहार की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संरचना को नया रूप दिया। 12वीं शताब्दी के मध्य में, मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आक्रमण कर इसे दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया। इस अवधि में, मुस्लिम शासकों ने कई मस्जिदें, मकबरें और किले बनवाए, जिनकी वास्तुकला आज भी बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।

मुगल साम्राज्य के अधीन, बिहार में सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का विस्तार हुआ। अकबर, जहांगीर और शाहजहां जैसे मुगल शासकों ने बिहार में कई सुधार और निर्माण कार्य किए। पटना, जो उस समय अज़ीमाबाद के नाम से जाना जाता था, मुगल शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया। यहाँ की मिट्टी की उर्वरता और गंगा नदी के किनारे बसे होने के कारण पटना का आर्थिक महत्व बढ़ गया।

बिहार की कला, संस्कृति और साहित्य पर भी मध्यकालीन अवधि का गहरा प्रभाव रहा। इस काल में सूफी परंपरा ने बिहार में अपनी जड़ें जमाईं। सूफी संतों ने समाज में धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश फैलाया। संत कबीर और संत गुरु नानक जैसे महान संतों ने बिहार की धरती पर अपने उपदेश दिए, जिससे सामाजिक और धार्मिक जागरूकता में वृद्धि हुई।

मध्यकालीन बिहार साहित्य के क्षेत्र में भी समृद्ध था। फारसी और उर्दू साहित्य का विकास हुआ, और कई महत्वपूर्ण साहित्यकारों ने बिहार में अपने कृतित्व का परिचय दिया। इसके अलावा, यहां की लोककथाएं और लोकगीत भी इस काल में प्रचलित हुए, जो आज भी बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

आधुनिक बिहार

बिहार का आधुनिक काल राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक विकास की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही, जहाँ चंपारण सत्याग्रह जैसे आंदोलनों ने महात्मा गांधी को राष्ट्रीय नेता के रूप में उभारा। स्वतंत्रता के बाद, बिहार ने कई चुनौतियों का सामना किया लेकिन स्थिर विकास की ओर भी अग्रसर हुआ।

राजनीतिक दृष्टिकोण से, बिहार ने कई प्रभावशाली नेता दिए जिन्होंने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जो स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बने, बिहार के ही थे। इसके अतिरिक्त, जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं ने सामाजिक और राजनीतिक सुधारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ये नेता न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा स्रोत बने।

सामाजिक परिवर्तनों की बात करें तो, बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और नई पीढ़ी को बेहतर अवसर मिल रहे हैं। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं की पहुंच बढ़ी है।

आर्थिक दृष्टिकोण से, बिहार ने कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। कृषि के क्षेत्र में नई तकनीकों और सरकारी नीतियों ने किसानों की स्थिति में सुधार किया है। साथ ही, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में भी रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है।

स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान तक बिहार ने कई महत्वपूर्ण मोड़ों को पार किया है। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में किए गए सुधारों ने राज्य को नई दिशा दी है। बिहार का यह सफर निरंतर प्रगति की ओर बढ़ रहा है, जो भविष्य में और भी उज्जवल संभावनाओं की ओर संकेत करता है।

बिहार की संस्कृति और परंपराएं

बिहार की संस्कृति और परंपराएं अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण हैं, जो इस राज्य की ऐतिहासिक और सामाजिक धरोहर को प्रतिबिंबित करती हैं। बिहार के लोक गीत और लोक नृत्य स्थानीय जनजीवन का अहम हिस्सा हैं। प्रसिद्ध लोक गीत जैसे कि ‘बिदेसिया’, ‘सोहर’, और ‘कजरी’ यहाँ की संस्कृति को जीवंत करते हैं। ये गीत न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश भी देते हैं।

लोक नृत्यों की बात करें तो बिहार का ‘झिझिया’, ‘झूमर’, और ‘समचकेवा’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये नृत्य मुख्यतः पर्व-त्योहारों और विशेष अवसरों पर किए जाते हैं, जो सामूहिक उल्लास और एकता को प्रकट करते हैं। ‘छठ पर्व’ बिहार का सबसे प्रमुख और विशेष त्योहार है, जिसमें सूर्य देवता की उपासना की जाती है। इसके अलावा, ‘दुर्गा पूजा’, ‘दीपावली’, और ‘होली’ भी बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।

बिहारी व्यंजन भी यहाँ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। ‘लिट्टी-चोखा’, ‘सत्तू’, ‘तिलकुट’, और ‘मखाना’ जैसे स्वादिष्ट व्यंजन न केवल बिहारी लोगों के दिलों में बसे हैं, बल्कि बाहरी लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। लिट्टी-चोखा के बिना बिहारी भोजन अधूरा माना जाता है।

बिहार की हस्तकला और शिल्पकला भी यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। मिथिला पेंटिंग, मधुबनी शैली की चित्रकारी अपने अद्वितीय और रंगीन डिजाइनों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। ये चित्रकारी न केवल घरेलू सजावट के लिए बल्कि सांस्कृतिक आयाम को भी दर्शाती हैं।

संक्षेप में, बिहार की संस्कृति और परंपराएं इसकी ऐतिहासिक और सामाजिक विविधता को दर्शाती हैं। ये परंपराएं और त्योहार न केवल बिहार की पहचान हैं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

प्रसिद्ध स्थल और पर्यटन

बिहार, अपनी प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, जिसमें कई महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल शामिल हैं। यहां के प्रमुख स्थलों में बोधगया, पावापुरी, राजगीर, और वैशाली शामिल हैं, जो न केवल ऐतिहासिक बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

बोधगया, बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है, जहां गौतम बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। यह स्थल बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है और यहां विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त महाबोधि मंदिर स्थित है। बोधगया में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं।

पावापुरी, जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यही वह स्थान है जहां भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था। पावापुरी में जलमंदिर और समोशरण जैसे स्थलों का धार्मिक महत्व है, और यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी पर्यटकों को आकर्षित करती है।

राजगीर, प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी थी। यह स्थल भी बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है। राजगीर में स्थित ग्रिधकूट पर्वत, जहां बुद्ध ने कई उपदेश दिए थे, और वेणुवन, जहां उन्हें पहला विहार मिला था, विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा, राजगीर में गर्म जल के कुंड और प्राचीन किला भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।

वैशाली, एक ऐतिहासिक नगर है जो महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर दोनों के जीवन से जुड़ा हुआ है। यह स्थल दुनिया का पहला गणराज्य होने का गौरव भी रखता है। यहां स्थित अशोक स्तंभ और अन्य पुरातात्विक अवशेष वैशाली के महत्व को और बढ़ाते हैं।

बिहार के ये सभी स्थल न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां का समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर प्रत्येक यात्री के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है।

बिहारी साहित्य और कला

बिहार का साहित्य और कला प्राचीन समय से ही समृद्ध और विविधतापूर्ण रहा है। यहाँ के प्रमुख साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत के साहित्य को समृद्ध किया है। मैथिली, भोजपुरी, और मगही भाषाओं में लिखे गए साहित्य ने साहित्यिक धरोहर को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया है।

मैथिली साहित्य के क्षेत्र में विद्यापति का नाम प्रमुख रूप से उभर कर आता है। उनकी रचनाएँ, विशेषकर उनके प्रेम गीत, आज भी लोगों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं। विद्यापति को मैथिली साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और उनकी रचनाएँ आज भी साहित्यिक विद्वानों के लिए अध्ययन का विषय बनी हुई हैं।

भोजपुरी साहित्य का भी अपना एक समृद्ध इतिहास है। भिखारी ठाकुर को भोजपुरी साहित्य का शेक्सपियर कहा जाता है। उनकी रचनाएँ समाज की बुराइयों को उजागर करती हैं और समाज सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भोजपुरी साहित्य ने भी बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया है।

मगही साहित्य का भी अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस भाषा में लिखी गई कविताएँ और कहानियाँ लोक जीवन की सच्चाइयों को उजागर करती हैं। मगही साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में बाबा नागार्जुन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जिनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं।

कला के क्षेत्र में भी बिहार ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। मधुबनी पेंटिंग, जिसे मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है, यहाँ की एक प्रमुख कला शैली है। यह पेंटिंग शैली अपनी विशिष्टता और सुंदरता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसके अलावा, बिहार की मूर्तिकला और हस्तशिल्प भी कला प्रेमियों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं।

बिहार का साहित्य और कला न केवल यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करता है बल्कि इसे एक विशिष्ट पहचान भी प्रदान करता है। बिहार के साहित्यकारों और कलाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को नई दिशा दी है और उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

वर्तमान बिहार और उसकी चुनौतियाँ

बिहार, एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विख्यात प्रदेश, आज भी कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। वर्तमान समय में बिहार के सामने शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के मुद्दे प्रमुख चुनौतियों के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं। शिक्षण संस्थानों की संख्या और गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है। हालांकि, सरकार ने ‘मुख्यमंत्री निश्चय योजना’ और ‘बिहार छात्रवृत्ति योजना’ जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के प्रयास किए हैं, लेकिन अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है।

स्वास्थ्य सेवा की स्थिति भी चिंताजनक है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और चिकित्सकों की अनुपलब्धता से जनसामान्य को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके समाधान के लिए राज्य सरकार ने ‘स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ और ‘आयुष्मान भारत’ जैसी योजनाओं का कार्यान्वयन किया है, लेकिन इनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना आवश्यक है।

रोजगार के मामले में, बिहार में बेरोजगारी दर उच्च स्तर पर है। युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसरों की कमी एक बड़ी समस्या है। सरकार ने ‘कौशल विकास मिशन’ और ‘मुद्रा योजना’ जैसी परियोजनाओं के माध्यम से रोजगार सृजन के प्रयास किए हैं, लेकिन धरातल पर इनके परिणाम सीमित हैं।

सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा किए जा रहे विकासात्मक प्रयासों के बावजूद, बिहार को अभी भी कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के क्षेत्रों में सुधार के लिए निरंतर और समर्पित प्रयासों की आवश्यकता है। केवल तब ही बिहार अपने विकास के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेगा और एक समृद्ध और विकसित राज्य के रूप में उभर सकेगा।

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